Surguja Ambikapur

अम्बिकापुर,@सरगुजिहा त्यौहार छेरता पर्व पौष पूर्णिमा के दिन हर गांव में धूम-धाम से मनाया गया

by admin on | Jan 26, 2024 08:03 AM

Share: Facebook | twitter | whatsapp linkedIn


अम्बिकापुर,@सरगुजिहा त्यौहार छेरता पर्व पौष पूर्णिमा के दिन हर गांव में धूम-धाम से मनाया गया

  • सरगुजा जिले में कई तरह के लोक पर्व मनाए जाते हैं,उन्हीं पर्वों
  • में से एक है छेरता जिसे छेरछेरा पर्व के नाम से भी जाना जाता है…पौष महीने
  • की पूर्णिमा पर छेरछेरा या छेरता पर्व हर्षाेल्लास के साथ मनाया गया…

अम्बिकापुर- 25 जनवरी 2024 । सरगुजा के समस्त गांवों में छेरता पर्व का पर्व धूम-धाम से मनाया गया। गावों में स्थानीय लोग एक साथ मिलकर त्यौहार मनाये। इस पर्व में छोटे बच्चों की विशेष भूमिका रही। छेरता पर्व के दिन सुबह से ही बच्चे, युवक और युवतियां हाथ में टोकरी,बोरी लेकर घर-घर छेरछेरा मांगते रहे। वहीं कई जगह युवकों की टोलियां डंडा नृ्त्य कर घर-घर पहुंचे। क्योंकि इस समय धान की मिंसाई होने के कारण हर घर में धान का भंडार होता है इसलिए छेरछेरा मांगने वाले लोगों को हर घर से नया धान और नकदी राशि मिली।
क्या होता है छेरता पर्व ?
जब गांवों में बच्चे नया चावल मांगने निकलते हैं, तो पारंपरिक अंदाज में वो एक गीत गाते हैं। छेर छेरता माई मोरगी मार दे, कोठे के धान ला हेर दे। हाथ में डंडे लिये ये बच्चे हर किसी के घर के सामने इन लाइनों को दोहराते हैं. जिसके बाद बच्चों को उस घर से नया चावल मिलता है. इसी तरह बड़े लोग रात के समय में छेरता का चावल मांगने निकलते हैं. इस दौरान महिला सुगा गीत गाती हैं और पुरुष शैला गीत के साथ नृत्य करते हैं. ये भी हर घर से चावल मांगते हैं। सभी किसान अपनी नई फसल का चावल दान करते हैं। धान कटाई और मिसाई के बाद धान को बेचकर सभी किसान खेती पूरी कर के खाली हो जाते हैं। इसी के उपलक्ष्य में ये त्यौहार मनाया जाता है।
फसल अच्छी होने पर
देवी देवताओं को दिया
जाता है धन्यवाद
छेरता पर्व का आयोजन छाीसगढ़ में साल के विशेष समय पर होता है। स्थानीय किसान अपनी फसलों की पूजा और धन्यवाद के रूप में इसे मनाये। पर्व की शुरुआत विशेष पूजा-अर्चना के साथ किया गया। जिसमें लोग अपने क्षेत्रों की सुरक्षा के लिए देवताओं की कृपा की प्रार्थना की।
गांवों में उत्सव जैसा रहा माहौल
सरगुजा जिले में छेरता पर्व के दौरान पूरा गांव का माहौल नया हो गया। गांवों में आपसी समरसता से कई तरह के प्रतियोगिताएं आयोजित की गई। कला कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। ग्रामीण एक दूसरे से मिलते हुए नजर आए। इस दौरान लोग आपसी भाईचारा और प्रेम को बढ़ाते रहे। यह पर्व सांस्कृतिक विविधता का भंडार है। जिसमें लोक नृत्य, संगीत और कला कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। इस दौरान स्थानीय कलाकारों को अपनी कला का प्रदर्शन दिखाने का मोका मिला

Search
Recent News
Popular News
Trending News
Ad


Leave a Comment