छत्तीसगढ़ Sarguja

आज माफिया गुण्डे और गुंण्डो से राजनितिक बने लोग अपनी राजनीती का फायदा उठाकर पत्रकारों को मार रहे है , झूठी एफआईआर कराकर उन्हें जेल भेज रहे है उनकी हत्याएं करवा रहे...?

by admin on | Mar 18, 2025 01:35 PM

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 आज माफिया गुण्डे और गुंण्डो से राजनितिक बने लोग अपनी राजनीती का फायदा उठाकर पत्रकारों को मार रहे है , झूठी एफआईआर कराकर उन्हें जेल भेज रहे है उनकी हत्याएं करवा रहे...?

मध्यप्रदेश में पत्रकारिता का होता अंत ?

यहाँ के सरताज पत्रकारों का शिकार कर उन्हें पिंजरे में डाल रहे ?

 आज माफिया गुण्डे और गुंण्डो से राजनितिक बने लोग अपनी राजनीती का फायदा उठाकर पत्रकारों को मार रहे है , झूठी एफआईआर कराकर उन्हें जेल भेज रहे है उनकी हत्याएं करवा रहे...?

"आदित्य गुप्ता"

देश का चौथा स्तंभ पत्रकारिता को माना जाता है क्योंकि जन-जन की भावनाओं को व्यक्त करने का यह सबसे लोकतांत्रिक तरीका है। और आज भले ही इसका एक विकृत रुप हमारे सामने आ रहा है पर स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान इसका एक मात्र उद्देश्य लोगों में चेतना जगाना और आज़ादी प्राप्त करना था। लेकिन वर्तमान में पत्रकारिता इंद्रा के आपातकाल से भी खतरनाक स्थिति में पहुंच गयी है आज माफिया गुण्डे और गुंण्डो से राजनितिक बने खतरनाक लोग अपनी राजनीती का फयदा उठाकर पत्रकारों को मार रहे है या झूठी एफआईआर कराकर उन्हें जेल भेज रहे है और जेल में मरवा रहे है ? 

देश में जहा जहा भाजपा की सरकार है हर वो जगह देश में खतरनाक है जहाँ पर पत्रकार असल मायने में पत्रकारिता कर रहा है उसे खतरा है, फिर चाहे वो घर के अंदर हो या बाहर, मतलब अगर वो समाज का दर्द महसूस करता है, ईमानदार के साथ ही साहसी भी है, इतिहास से वाकिफ़ है, भूगोल और विज्ञान को समझता है, उसकी समीक्षा और निरीक्षण करता है, आलोचना करना जानता है तो उसे खतरा है?

ये खतरा सिर्फ किसी राजनीतिक सत्ता के खिलाफ खड़े होने पर ही नहीं बल्कि किसी भी कुरीति, अंधविश्वास या बाहुबली के विरोध में खड़े होने में है। अब पत्रकारिता नहीं चाटुकारिता हो रही है विशेषकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में हमारे देश में अभी भी गरीबों, कमजोरो पर अत्याचार होता है, बेरोजगारी इतिहासिक रुप से बढ़ी है, भ्रष्टाचार कम नहीं हुआ है,बाल मजदूरी अभी है,भूख व इलाज की कमी से लोग अभी भी मरते हैं, सुखा बाढ़ अभी भी आते हैं, किसान अभी भी आत्महत्या करते हैं, बहनों बेटियों की अस्मत अभी भी सुरक्षित नहीं है, मध्यप्रदेश ,बिहार, उड़ीसा, पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोगों को अभी भी रोजी-रोटी के लिए बाध्य होकर बाहर काम करने जाना होता है जिसमें उनका शोषण भी होता है ?

क्या यें सब विषय पत्रकारिता का हिस्सा नहीं रहे ? और क्या अमिताभ बच्चन का बिमार होना, किसी हिरोइन का नया लुक, मोदी जी की नई ड्रेस में फोटो, टीवी पर चिल्लाना यही पत्रकारिता है?

एक पत्रकार जब माफियाओ के खिलाफ़ मोर्चा खोलता है तो उत्तर प्रदेश के राघवेंद्र बाजपाई और बस्तर के मुकेश चंद्राकर या मध्यप्रदेश के रायसेन जिले के बाड़ी के पत्रकार प्रकाश चंद्र जैन की तरह मारा जाता है।  या फिर अगर उसने अंधेर नगरी के राज खोले तो उज्जैन के पत्रकारों ,भोपाल की महिला पत्रकार सागर के पत्रकार ,शहडोल के पत्रकार की तरह झूठी एफआईआर का शिकार होगा और फिर भी उसने झुकने का नाम नहीं लिया तो सरकार उसे मौत की सलामी देगी ? 

पत्रकारिता को लेकर मध्यप्रदेश पिछले एक वर्ष में सबसे खतरनाक राज्य बना हुआ है और यहाँ के सरताज पत्रकारों का शिकार कर उन्हें पिंजरे में डाल रहे ? इन हालातो को देखकर ऐसा लगता है की मानो जल्द ही देश और प्रदेश में पत्रकारिता का अंत तय है ?

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